दिवाली, यानी अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व। इस साल, यह त्योहार भारत की जेलों में बंद हजारों गरीब कैदियों के लिए सचमुच उम्मीद की एक नई किरण लेकर आया है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक और बेहद मानवीय फैसला सुनाते हुए यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया है कि कोई भी गरीब व्यक्ति सिर्फ इसलिए जेल में न रहे, क्योंकि उसके पास जमानत की रकम (Bail Bond) भरने के पैसे नहीं हैं।
यह आदेश उन हजारों विचाराधीन कैदियों (undertrials) के लिए एक बड़े “दिवाली गिफ्ट” से कम नहीं है, जिन्हें अदालतों से जमानत तो मिल गई थी, लेकिन वे अपनी गरीबी के कारण रिहा नहीं हो पा रहे थे।
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Toggleसमस्या क्या थी: एक कानूनी विरोधाभास
हमारी न्याय व्यवस्था में एक कड़वी सच्चाई यह है कि कई विचाराधीन कैदियों को सिर्फ इसलिए लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है, क्योंकि अदालत द्वारा तय की गई जमानत राशि या मुचलका (Surety) वे नहीं भर पाते।
उन्हें अदालत ‘निर्दोष’ नहीं मानती, लेकिन ‘दोषी’ भी करार नहीं दिया गया होता। उन्हें जमानत का अधिकार मिलता है, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण यह अधिकार उनके लिए बेमानी हो जाता है। यह स्थिति न केवल जेलों में भीड़ बढ़ाती है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) की मूल भावना के भी खिलाफ है। एक व्यक्ति की आजादी सिर्फ इसलिए नहीं छीनी जा सकती क्योंकि वह गरीब है।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक समाधान: नई SOP जारी
इस गंभीर मुद्दे का संज्ञान लेते हुए, जस्टिस एम. एम. सुंदरेश और जस्टिस एस. सी. शर्मा की बेंच ने एक नई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की है। यह SOP सुनिश्चित करेगी कि पैसे की कमी किसी की रिहाई में बाधा न बने।
इस नए आदेश के मुख्य बिंदु:
- 7-दिन की समय-सीमा: अगर किसी कैदी को जमानत मिलने के 7 दिनों के भीतर रिहा नहीं किया जाता है, तो जेल अधीक्षक को तुरंत इसकी सूचना जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (District Legal Services Authority – DLSA) के सचिव को देनी होगी।
- DLSA की सक्रिय भूमिका: DLSA सचिव तुरंत यह पता लगाएंगे कि कैदी अपनी आर्थिक स्थिति के कारण जमानत नहीं भर पा रहा है या नहीं।
- सरकारी मदद से भरेगी जमानत: यदि यह पाया जाता है कि कैदी गरीब है, तो DLSA एक ‘जिला-स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति’ (Empowered Committee) से सिफारिश करेगा। यह समिति 5 दिनों के भीतर उस कैदी की जमानत राशि भरने के लिए सरकारी फंड से पैसे जारी करेगी।
- आर्थिक सीमा: यह समिति ‘गरीब कैदियों को समर्थन योजना’ के तहत प्रति कैदी ₹50,000 तक की राशि जारी कर सकती है। यदि आवश्यक हो, तो इसे ₹1,00,000 तक बढ़ाया जा सकता है।
- जमानत राशि कम कराना: अगर अदालत ने जमानत राशि ₹1 लाख से भी अधिक तय की है, तो DLSA खुद अदालत में आवेदन देकर उस राशि को कम करने का अनुरोध करेगा, ताकि कैदी को रिहा कराया जा सके।
यह ‘गिफ्ट’ नहीं, ‘न्याय’ है
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम सिर्फ एक ‘त्योहारी छूट’ या ‘तोहफा’ नहीं है, बल्कि यह न्याय के मूल सिद्धांत को स्थापित करता है। यह “बेल, नॉट जेल” (Bail, not Jail) के नियम को मजबूती देता है।
इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि न्याय तक पहुंच केवल पैसे वालों का विशेषाधिकार नहीं हो सकती। यह उन हजारों परिवारों के लिए एक सच्ची दिवाली लाएगा, जिनके अपने केवल इसलिए सलाखों के पीछे थे क्योंकि वे गरीब थे। यह भारतीय न्याय प्रणाली में एक मानवीय और प्रगतिशील सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है।
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