नई दिल्ली: भारतीय न्यायपालिका में एक ऐतिहासिक और दूरगामी प्रभाव डालने वाले फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे न्यायिक अधिकारी जिन्होंने न्यायिक सेवा में आने से पहले कम से कम सात साल तक वकालत की है, अब सीधे जिला जज के पद के लिए प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिससे निचली अदालतों में कार्यरत कई न्यायाधीशों के लिए करियर में आगे बढ़ने का एक नया रास्ता खुल गया है।
यह फैसला उस पुरानी व्यवस्था को बदलता है जिसके तहत जिला जज की सीधी भर्ती के लिए ‘बार कोटे’ की सीटें केवल प्रैक्टिस करने वाले वकीलों के लिए आरक्षित थीं।
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Toggleक्या था पुराना नियम?
पहले, संविधान के अनुच्छेद 233(2) की व्याख्या इस तरह की जाती थी कि जिला जज के पद पर सीधी भर्ती के लिए केवल वे ही वकील पात्र थे, जिन्हें वकालत का कम से कम सात साल का अनुभव हो और वे उस समय किसी सरकारी या न्यायिक सेवा में न हों।
इसका मतलब यह था कि अगर कोई वकील 7-8 साल की प्रैक्टिस के बाद न्यायिक सेवा में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के तौर पर शामिल हो जाता था, तो वह जिला जज की सीधी भर्ती परीक्षा में शामिल नहीं हो सकता था। उन्हें केवल पदोन्नति (प्रमोशन) के लिए अपनी वरिष्ठता का इंतजार करना पड़ता था। सुप्रीम कोर्ट का ‘धीरज मोर बनाम दिल्ली उच्च न्यायालय’ (2020) मामले में दिया गया फैसला इसी व्यवस्था को पुख्ता करता था।
सुप्रीम कोर्ट का नया और प्रगतिशील फैसला
गुरुवार को दिए गए अपने ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी और संकीर्ण व्याख्या को पलट दिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसी रोक भेदभावपूर्ण है और इससे न्यायपालिका को प्रतिभाशाली और अनुभवी अधिकारियों की सेवाओं से वंचित रहना पड़ता है।
फैसले के मुख्य बिंदु:
- न्यायिक अधिकारी भी पात्र: वे सभी न्यायिक अधिकारी जिन्होंने जज बनने से पहले एक वकील के रूप में सात साल की प्रैक्टिस पूरी कर ली है, वे बार कोटे के तहत जिला जज की सीधी भर्ती के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे।
- अनुभव का संयोजन भी मान्य: कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी उम्मीदवार के वकील के तौर पर और एक न्यायिक अधिकारी के तौर पर मिलाकर कुल सात साल का अनुभव भी इस पद के लिए मान्य होगा।
- समान अवसर: सभी उम्मीदवारों के लिए एक समान अवसर सुनिश्चित करने हेतु, कोर्ट ने आवेदन की तारीख तक न्यूनतम आयु 35 वर्ष निर्धारित की है, चाहे उम्मीदवार वकील हो या न्यायिक अधिकारी।
- योग्यता सर्वोपरि: पीठ ने जोर देकर कहा कि चयन का एकमात्र आधार योग्यता होनी चाहिए। प्रतिभाशाली न्यायिक अधिकारियों को केवल इसलिए रोकना क्योंकि वे पहले से ही सेवा में हैं, न्यायपालिका की उत्कृष्टता के लिए हानिकारक है।
इस फैसले का महत्व क्यों है?
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कई मायनों में महत्वपूर्ण है:
- प्रतिभा को प्रोत्साहन: यह फैसला युवा और प्रतिभाशाली न्यायिक अधिकारियों को अपने करियर में तेजी से आगे बढ़ने का मौका देगा। इससे न्यायपालिका में बेहतरीन लोगों को आकर्षित करने और बनाए रखने में मदद मिलेगी।
- भेदभाव का अंत: यह न्यायिक अधिकारियों के साथ होने वाले भेदभाव को समाप्त करता है और उन्हें वकीलों के बराबर अवसर प्रदान करता है।
- व्यापक अनुभव का लाभ: न्यायिक अधिकारी अपने साथ বিচারিক अनुभव लेकर आते हैं, जो जिला जज के पद के लिए अत्यंत मूल्यवान है। इस फैसले से न्यायपालिका को उनके अनुभव का सीधा लाभ मिलेगा।
- बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा: अब जिला जज की सीधी भर्ती के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे अंततः बेहतर और अधिक योग्य उम्मीदवारों का चयन सुनिश्चित होगा।
अब आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया है कि वे तीन महीने के भीतर अपने-अपने न्यायिक सेवा नियमों में इस फैसले के अनुरूप आवश्यक संशोधन करें। यह फैसला भविष्य में होने वाली सभी भर्तियों पर लागू होगा।
निश्चित रूप से, यह फैसला भारतीय न्यायपालिका में एक नए अध्याय की शुरुआत है, जहाँ योग्यता और अनुभव को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है, ताकि न्याय की नींव और भी मजबूत हो सके।